Friday, December 26, 2014

दिल्ली के आम आदमी और mufflerman

सर्दियाँ दिल्ली में अचानक से बढ़ गई थी, और मेरा geyser काम नहीं करने पर  मैंने अपने पीजी की आंटी को  इसे ठीक करवाने बोला। ये सब काम उनके ड्राईवर हैंडल करते है जिनसे जब भी मुलाक़ात होती तो थोड़ी बहुत दिल्ली की राजनीति पर बातें  हो जाती है। उस दिन  भैया  ने  ने मुझसे पूछा की इस बार दिल्ली में आप किसे वोट दोगे , मैंने स्पस्ट उत्तर दिया की बीजेपी अगर दिल्ली के मुख्यमंत्री  के ऊमीद्वार में श्री हर्षवर्धन जी को खड़ा करे तो उन्हे या फिर NOTA। इसपर उन्होने  मुझसे बोला की दीदी आप लोग दिन भर ऑफिस में रहते हो , AC लगे रहते है वहाँ, आपके काम करने के लिए अनुकूल माहौल होगा ,  आपलोगो को शायद ही कभी पुलिस से या सरकारी दफ्तरों से में किसी काम से जाना होता होगा...हमारे घर पर केटरिंग का बिजनेस है और हर समय कुछ पुलिस को देना होता है......आपको विविश्वास नहीं तो औरों से खुद बात करके देख लेना।   49 दिन में केजरीवाल जी के जाने से मैं भी काफी दुखी थी और इस बात की सच्चाई जानने के लिए मैंने कुछ दिनो तक लगातार   खाली समय में   ठेला वाले, रिक्शा वाले , ऑटो वालों से बात करके जमीनी स्थिति को उनके नज़र से देखना शुरू  किया ।मैंने उनसे पूछना शुरू किया की कब से दिल्ली में रहते हो , यहाँ दुकान कब से लगा रहे हो,और भाई इस आप किसे और क्यूँ   मुख्य मंत्री  के रूप में देखना चाहते हो।
90% लोगो जो इन श्रेणी से आते है उनके मत में उन्हे अपना मुख्य मंत्री केजरीवाल जी चाहिए।क्यूँ के जवाब में मुझे वही उत्तर मिला जो मेरे पीजी के भैया ने मुझे बताया था।एक ऑटो वाले (साउथ दिल्ली इलाके का ) को अपनी  लाल  ration कार्ड बनवाने के लिए कितने साल चक्कर काटने पड़ते है , और आज भी उसे लाल राशन कार्ड नहीं मिला,अब उसे सफ़ेद राशन कार्ड मिला है जिसका उसके लिए कोई लाभ नहीं है। वो ऑटो वाला रास्ते भर सरकारी तंत्रो पर ऐसे कटाक्ष कस रहा था जिससे मुझे पीड़ा महसूस हो रही थी।  हर हफ्ते नयी जगह बाजार लगाने वालों के भी बाज़ार लगाने पर राते फिक्स है। मेरे घर एक ब्युटिशीयन आती है जो कम उम्र में विधवा हो गई पर विधवा कार्ड के लिए अगर कोई ये पूछे की आप तो विधवा नहीं दिखती तो क्या बीतती होगी वो मैं भी नहीं बता सकती , वो लड़की स्वाभिमानी थी तो अपने बच्चो का पालन पोषण लोगो के घर घर जाकर ब्युटिशीयन का काम करके कर लेती है पर ये सरकारी तंत्र में कमी नहीं तो और क्या है ।  कुछ लोग का मत अब भी था की केंद्र में हमने भी मोदी को मत दिया था पर दिल्ली में केजरीवाल से जायदा और कोई उनके लिए नहीं कर सकता। मुझे काफी हैरानी हुई , मैंने दुबारा पूछा की आपको लगता नहीं की केंद्र और राज्य की सरकार अलग है तो इससे लोग और पिस जाएंगे पर उनका समर्पण देखकर मैं स्तब्ध रह गई।  उन लोगो के हिसाब से आज केंद्र सरकार द्वारा इतने बिल व कानून पास होने के बावजूद उन्हे एक ठेला लगाने के लिए पुलिस को पैसे देने होते , अपनी व्यापार करने की क्षमता से लोगो के रेट फिक्स है , फेरीवाला के 200 रुपेए हर दिन के और कपड़ा बेचने वालों के कुछ जायदा .....समान को कहीं ले जा रहा है तो उसका अलग से कुछ देना होता है। मुझे ये नहीं पता है की ये पैसे लेना कितना जाएज है परंतु अगर ये सही होता तो 49 दिनो वाली केजरीवाल के सरकार में ऐसा नहीं होता की इन्हे पैसे नहीं देने पड़ते। उनके शब्दों में उन्हे 49 दिन तक किसी पुलिस वाले ने , सरकारी बाबू ने तंग नहीं किया , उन्हे लगा की उनकी बात लोग सुन रहे है और उनके काम हो रहे है ,उनके काम होने लगे थे और अचानक केजरीवाल जी ने इस्तीफा दे दिया जिससे उन्हे धक्का लगा पर फिर भी उन्होने ने एक बार और उन्हे मौका देने का सोचा है। मुझे अब लगने लगा था की मेरे पीजी के ड्राईवर भैया ने कुछ गलत नहीं बोला था । उनकी बात और आँखों में सच्चाई देखकर थी और इसलिए मैंने खुद  इस बात को परखना उचित समझा  और मुझे भी लगता है की अगर हर किसी को दूसरा मौका मिलता है , केजरीवाल जी को भी देना बनता है ,अपने लिए लिए नहीं तो उन लोगो के लिए जिनके चेहरे पर खुशी देखकर एक अलग सा सुकून  मुझे मिलता है, गुड गवर्नेंस केजरीवालजी  लाये या मोदीजी मुझे उससे फर्क नहीं पड़ता, मेरा सपना तो एक socialist सोसाइटी का है, जहां सब समान हो 

हमारे देश में सरकारी तंत्र की जो वर्तमान स्थिति है और काम के हिसाब से जो पैसे मिलते है उनमें ये करना कोई नई बात नहीं है, सत्ता पक्ष खुद को सर्वोपरि मानने लगती है और पूरा तंत्र उन्हे देवता मानकर उनकी पुजा करता है । 2nd ARC रिपोर्ट में पुलिस व bureaucracy को पुनर्गठित करने के लिए कितने ही अच्छे सलाह है जो कोई भी  सरकार नहीं कर रही है , और इसके परिणाम स्वरूप पिस्ता है आम आदमी , या तो पुलिस की वर्दी के पीछे जिसके लिए घर चलाने को उसकी दरमाह काफी नहीं है ,जो काम तो करते है पर उन्हे वो इज्ज़त नहीं मिलती जो उन्हे मिलनी चाहिए  या फिर ये फेरी वाले  जो कम से कम भीख नहीं मांगकर अपने परिवार के लिए हर परिस्थिति से लड़ रहे है।
दोषी यहाँ मैं पुलिस को भी नहीं मनुगी.....पर इस परिस्थिति के लिए क्या जिम्मेदार है वो सरकार खुद आतमन्थन करे। मोदी लहर पूरे देश में भले भी चल रही है ( और मैं भी उनका काफी सम्मान करती हूँ ) पर सत्ता पक्ष जब तक इन लोगो के लिए योजनाएँ बनाने के अलावा वो काम नहीं करती जिनसे इनकी जमीनी  स्थिति  सही मायने में सुधरे तब तक सत्ता पक्ष को सफल नहीं माना जा सकता है।

"Good Governance is more than mere formulating slogans and schemes without restructuring proper mechanism to implement them."

वंदे माँ भारती ! जय हिन्द !!


Wednesday, December 3, 2014

लूटता बचपन,गैर कानूनी मानव व्यापार व टैक्स की चोरी

 “दीदी आज मेकों आइस-क्रीम  खाना है! दीदी मुझे चिकेन बनाकर खिला दोगे?” दीदी आप फ्री हो जाओ तो बताना मुझे आगे पढ़ना सिखा दो !!” - कभी ये शब्द प्रश्नवाचक होते , कभी विनतिपूर्वक व कभी हक़ से परिपूर्ण.....
ऑफिस से पीजी (PG) पहुचते ही ऐसे ही  समय कुछ वाक्य व इन बच्चो के गुजर जाता  है। इन बच्चो का बचपन ऐसे व्यर्थ होते देख मन कचोट जाता है...कभी कभी इन बच्चो का काम करने का मन न करे तो डांट भी पड़ती है और कुछ लोग छोटी-छोटी बातों पर हाथ भी उठा देते है , ये भूलकर की ये बच्चे है ,अगर ये कहीं काम कर रहे है तो इनकी मजबूरी है .....नहीं तो कौन माँ बाप ख़ुशी से अपने बच्चो को दूर देश कमाने भेज सकता है ?सोचती हूँ  कहाँ भेज दूँ इन्हे जहां इनका  बचपन सुधर सके......हम भी कभी बच्चे थे , माँ बाप के दुलारे , घर का काम भी पापा नहीं करने देते थे , बोलते थे पहले पढ़ो , और सारे काम बाद में सीखे जा सकते है, ( मैं फिर भी पापा के क्लीनिक जाने के बाद माँ से कुछ कुछ बनाना सीखती थी :P ) मैं ये सब क्यूँ सोचती हूँ मुझे भी नहीं पता , पर ये सब देख कर अनदेखा भी नहीं कर पाती। 

 मैं दिल्ली के एक पीजी में रहती हूँ ,ये इलाका विद्यार्थियों का है इसलिए हर गली में कोई न कोई पीजी , ढाबा मिल जाता है और साथ में वहाँ काम करते हुए छोटे छोटे मासूम बच्चे जो दयनीए स्थिति में अपनी खुशी ढूंढने का प्रयास करते दिख जाते है......अधिकतर बच्चे / व्यसक  जिनसे मैंने बात की वो बिहार , झारखंड, ओड़ीशा व उत्तर पूर्वी भारत के गरीब इलाको से लाये गए होते है , बड़ी चालाकी से ऐसे बच्चे यहाँ लाये जाते है जिनके घर पर उन्हे खाने को दो ज़ून की रोटी नसीब नहीं होती, उन्हे लाने के पीछे कारण शायद ये है की काम करने के बाद ये जितना खाते है इन्हे खाने दो , पेट भरते रहने पर ये कहीं जाएंगे नहीं।
पीजी में जो बच्चे या तो व्यसक एजेंट के जरिये लाये गए है, या वो खुद भागकर अच्छे खान पान , चमक देख कर दिल्ली आ जाते है।  सरकार के अधिकतर योजनाये होती तो है अनुसूचित जाती- जातियो के लिए परंतु जिनहे इसकी सच में जरूरत है उन तक कभी नहीं पहुच पाती । बच्चो को घर पर खाना नहीं मिलता , कपड़ा नहीं मिलता और यहाँ उन्हे सब मिल जाता है तो वो घर से भाग कर खुद एजेंट के पास चले आते।एक मज़ेदार बात और ये भी पता लगी की कुछ के माँ ने 2-4 शादियाँ कर ली थी व पिताजी ने 4-5 तो कौन किसके बच्चे है इस  संदेह में वो पीस जाते थे। अब ऐसे vulnerable बच्चो को अगर पेट भरके खाना 3-4 समय मिले तो उन्हे और क्या चाहिए  होगा । एक आदिवासी  लड़की (15-18 साल ) को पंजाब में कहीं नए नाम के साथ भेज दिया गया था जहां उससे काफी काम करवाया जाता था, फिर वो अमृतसर के किसी डॉक्टर दम्पति  के घर लगी , एक दिन मौका पाकर उसने हमारे पीजी के मालकिन को फोन किया व संक्षेप में सारी कहानी सुनकर वापस ले जाने को कहा ,इस बात से मुझे बहुत खुशी हुई की कुछ दिनों के  के अंदर हमारी पीजी के मालकिन उसे वापस ले आई और अब वो हम सबके साथ रहकर खुश है..... अब पहचान छुपाने की जरूरत किसी भले कारण के लिए तो कोई करता नहीं है , आगे पाठकगण  स्वयं समझदार  है ।
इन लोगो को मैं न दस्यु बोलुंगी न बंधुआ मजदूर , ये कम पैसो पर काम करने वाले है , जिनकी मजबूरी का फायदा हमारे समाज के ऊपरी वर्ग के लोग उठा रहे है , हर कोठी के आराम तलब ज़िंदगी के पीछे ये लोग ही तो है।
इन लोगो को देख कर कई बार मेरी कलम उठी व लेटर ड्राफ्ट किया पर पोस्ट करने की हिम्मत नहीं हुई , इसलिए नहीं की मुझे पुलिस से डर लगता है पर इसलिए क्यूंकी अगर मैंने इन्हे यहाँ से निकाल भी दिया तो आगे क्या ? क्राइम पट्रोल जैसे नाटक देखकर जहां इनके rehabilitation सेंटर पर बढ़ते अपराध दर  को देख कर डरती हूँ की कहीं इनके लिय कुछ करने के चाह में इनका बचपन न छिन जाए। स्किल develop करवाने के चक्कर में कुछ गलत न हो जाए , यहाँ इस पीजी में सिर्फ लड़कियां रहती है , इनके जैसे कुछ और आदिवासी लोग भी है जिनके साथ ये थोड़ा हँस-खेल लेते है। 

Human trafficking, child labour, tax evasion+Black Money, Beggary, illegal organ trading और न जाने क्या क्या एक दूसरे से ऐसे जुड़े है की बिना इंटेगेरटेड अप्रोच के बिना इन बच्चो का बचपन इन्हे वापस नहीं मिल सकता इन बच्चो को देखकर मन सोचने को मजबूर हो जाता की कहाँ गई हमारे देश की बड़ी बड़ी योजनाएँ?
कहाँ गए इनके लिए बनाए गए 27 % का आरक्षण ? ये बेचारे तो अपना पेट पालने के लिए भी कितनों की डांट फटकार सुनते है , कुछ पढ़ना चाहते है तो उन्हे हमारी पीजी के लडकीय पढ़ा देती है पर सुबह से शाम तक थके हारे होने के बाद बहुत कम ही लोगो में ये जज्बा होता है की चलो कुछ अच्छा सीख लेते है।  दिल्ली में जैसे जैसे भारत के अन्य जगहों से लोगो का आना बढ़ा है वैसे वैसे paying guest accommodations , ढाबा वाले , डिब्बे-वाले की शंखया भी बढ़ी है और साथ में  मांग बढ़ी है human trafficking और इन्हे लाने वाले एजेंट की .....जो इन्हे कहीं पूरे समय खाना बनाने , सफाई करने, भीख मांगने व वैश्यवृति के काम में लगा देते । इनमें से ना के बराबर लोग ही सरकार को tax देते व शिकायत करने पर पैसे देकर मामला दबाने में हम हिन्दुस्तानियो की बराबरी कोई कर ही नहीं सकता।
हर दिन कितने ही बच्चो का अपहरण हो रहा है और कुछ सालों बाद पता चलता है की उस बच्चे से जबर्दस्ती कहीं काम करवाया जा रहा है, कहीं गैर कानूनी आंतरिक अंगों को बेचने का कारोबार पनप रहा है। ऑपरेशन स्माइल के जरिये गाजियाबाद पुलिस  ने डीएसपी श्री रणविजय सिंह जी के नेतृत्व में जो कदम उठाया वो बेहद सराहनिए है,पर सिर्फ पुलिस ही सब कर लेती तो “community – policing” जैसे शब्दों का इजात कभी नहीं होता। गौर करे , वैशयावृति से जायदा एजेंट को फायदा बाल मजदूरी  देकर मिलता है और इसलिए आजकल ये जोरों से चल रहे है , और आप खुद पाएंगे की ये बच्चे हमारे अविकसित राज्यों के है, वहाँ के सरकार तो कान पर पत्थर डालकर बैठी है पर मैं  भारत सरकार से उम्मीद करूंगी की वो काला धन वालों पर नकेल कसने के क्रम में ऊपर जिक्र किए गए लोगो पर भी कुछ करेंगे जिससे की फिर से कोई human trafficking करने से पहले सौ बार सोचे।

जय हिन्द !! जय भारत

* बाल मज़दूरी का सीधा संबंध कर-चोरी से है , उदाहरण के लिए , एक दुकान वाला अपनी दुकान में 10 काम वाले रखता है , जिनमें से 5 बच्चे है...अनपढ़......गरीब ......जिनसे कम पैसो पर काम करना पड़ता है । अब वो दुकान वाला अपनी अकाउंट बूक में 10 लोगो को सैलरी देता है , ऐसा दिखा कर अपने हिस्से में लाभ कम दिखाएगा , बच्चे अनपढ़ व हुनर की कमी होने से ये जान नहीं पाते की वो यहाँ कम पैसो में जायदा काम कर रहे है ....ये पैसे फिर 5 बच्चो के है वो कहाँ गए ??? निश्चय ही वो काला धन बन रहा है। 

Tuesday, November 25, 2014

चेहरा

ज़िंदगी की काफी गूढ़ पहलू आजकल मेट्रो (डीएमआरसी) में देखने मिल जाता है , पिछले हफ्ते मैं रोजाना की तरह 9am मेट्रो में सफर कर रही थी , राजीव चौक से एक मुस्लिम महिला गोद में अपने पोते  को लेकर आई और एक महाशय से सीट देने का अनुरोध किया। 2-3 स्टेशन बाद उस बच्चे ने अपना मुह सामने की तरफ किया तो मैंने देखा की उसका एक तरफ का चेहरा बुरी तरह जला हुआ है... वो बच्चा सबके साथ खेलने की कोशिश कर रहा था , पर मेट्रो में इंसान कम मशीन जायदा चलते है ..... बच्चे को  लोग जानबूझकर इगनॉर कर रहे थे या सच में व्यस्त थे कह नहीं सकती हूँ ।  मैं उस सीट के दूसरी कोने पर खड़ी थी और उस दिन किताबों के पन्ने उलटने के बजाए मैं उस  बच्चे  की  आँखों में उलझ गई।
समझ नहीं आया की इतनी बुरी तरह वो नन्हा सा फरिश्ता कैसे जल गया?? उसकी एक तरफ की आँखों में माशूमियत थी  व  दूसरी आँख में एक अजीब सा सूनापन.....दूसरी आँख की पलक भी जल जाने पर वो बच्चा जो अपनी आँखें गोल गोल घूमा रहा था उसे देख कर पता नहीं चल रहा है की वो क्या कहना चाहता है , पहली बार मैंने खुद को एक बच्चे की आँख पढ़ने में असमर्थ पाया।

बड़े शहर के लोग की भावनाएँ भी लोगो के बाहरी रूप को देख कर प्रभावित होती है वो मुझे उस दिन मेट्रो में साफ दिख रहा था। एक कटु सत्य का एहसाह हुआ- लोग कितना भी बोल ले पर आज भी शरीरीक खूबसूरती आंतरिक मन से पहेले आती है , किसी की भावनाओ को लोग ऐसे ही कुचल देते क्यूंकी कहीं न कहीं उन्हे और अच्छा पाने की चाह थी ..... 

आँखों के सामने एसिड-प्रतारित लोगो के वेदना पीड़ा आने लगी और खुद को उनके जगह पर रख कर उनकी पीड़ा का एहसाह हुआ , कॉलेज के समय बायो –टेक की लैब में डीएनए निकलते समय हाथ काफी बार जला पर अगर किसी के ऊपर एसिड फेक दे या किसी को जिंदा जला दे तो उसे कितने जायदा पीड़ा होती होगी उसका एहसाह मुझे होने लगा...उस बच्चे के चेहरे में मुझे सत्यमेव जयते में आई हुई लक्ष्मी का चेहरा दिखा और उस इंसान का जिनहोने उनसे शादी करके अपना जीवन साथी बनाए , एक अलग सा सम्मान /आभार उनके लिए आने लगा , लोग बड़ी बड़ी बातें बोलते है पर किसी के हृदय के खूबसूरती को देख कर उसे अपना लेना बहुत कम लोगो  के बस में होता है........और न जाने क्या क्या बातें आखो के सामने चल-चित्र की तरह चलने लगा......
इतने में एम्स पर मेट्रो रुकी और वो नन्हा फरिश्ता अपने दादा –दादी के जाने लगा तो मैं अपने ख़यालो की दुनिया से बाहर आई

23.11.2014
( आज एक हफ्ते गुजर जाने के बाद भी उस बच्चे की आखें /चेहरा मेरे सामने से हट नहीं रहा है , तो सोचा लिखकर मन हल्का कर लूँ )

Friday, November 21, 2014

राजस्थान – एक मधुर स्मृति

राजस्थान में रहने का सौभाग्य कॉलेज के समय मिला ,इंजीन्यरिंग के  2nd इयर में मुझे  अपने कुछ साथियों के साथ NSS ( राष्ट्रीय सेवा योजना ) से जुडने का मौका मिला , हमारे गाइड गौरव सर  विमल सोनी सर थे, उनके कुशल नेतृत्व में हमने कुछ गावों में जमीनी स्तर पर काम किया। राष्ट्रीय सेवा योजना के तहत हमे अपने जूनिर्स के साथ काफी अच्छी अच्छी जगह जाने का मौका मिला जिन में से कुछ प्रमुख है ,हर्ष की पर्वत शृंखला, रेवासा की गऊ- साला और कुछ गिरि पर बसे दुर्ग (devgarh fort) जिनमें आज भी सरकार चाहे हो अपने संरक्षण में लाकर अच्छा मुनाफा ले सकती है । राष्ट्रीय सेवा योजना के अंतर्गत  हमने सड़क दुर्घटना व् उनसे  बचाव , प्लान्टेशन , डायबिटीज   दूसरे लाइफ स्टाइल   सम्बंधित  बिमारियां  उनके घरेलु  सस्ते बचाव के तरीके (being a student of biotechnology I had deep interest in these disease and finding a easy cure for these lifestyle disease, what today are being sold by big companies to prevent diabetes on high price after 2010 those method we had told through these awareness campaign in 2008-09 ) इत्यादि     पर  भी काम किया  जिनका जिक्र  कभी कभी लोकल पेपर्स में आ  जाता था , पर उनमें सिर्फ  इवेंट के  बारे में लिखते थे और बचाव के उपाय नहीं  ;)
सबसे अच्छा रहा था राजस्थान की गावों में जाना , हमे आज भी नहीं पता है की जिन गावों में हमने काम किया वो किनके गावों थे , ठाकुरों के , ब्राह्मणो के , जाटों गुर्जरों या और किसी जाती की पर जो प्यार हमारी टीम को वहाँ से मिला वो अविस्मरणीय है। हमने ऐसे घर भी देखे जहां 2 कमरो में 14 लोग थे और ऐसी भी हवेलियाँ देखी जहां  मुश्किल  से 4-5 लोग रहते थे । हमारी टीम ने कुशल संगरक्षन के आधार पर बच्चो में अच्छी आदतें डलवाने के लिए पुरस्कार का सहारा लिया और इसके अंतर्गत सोलर लैम्प कुछ मेधावी / कर्मठ  बच्चो को दिये गए थे। बायो-टेक के विद्यार्थी होने के कारण मुझे खुद मेडिकल बायो-टेक में जायदा रुचि थी और उसके सहारे हम लोग SARS (Severe acute respiratory syndrome) व मलेरिया का संक्रामण से  बचाव के लिए लोगो को शिक्षित करने, उन्हे बचाव के उपाय बताने की कोशिश कर रहे थे । हमारे साथ के जो लड़के थे वो खुले कुओं में मच्छर मारने  की दवा इत्यादि का  छीरकाव कर रहे थे। इसके साथ हमारी टीम बच्चे बूढ़े को और छोटी मोटी बातें बताने थे जो उन्हे काम आ सके। जब गॉव  वालों को बीमारी का सीधा रिस्ता सफाई से हमने जोड़कर दिखाया तो वो आशर्चकित रह गए और बच्चों के साथ बड़ो ने भी  अपने आस  पास सफाई रखने का संकल्प किया { हमारा सन २००८/०९  वो छोटा सा स्वच्छ गॉव अभियान था :) } कुछ महिलाए  काफी  भावुक हो गई थी , उन्होने हमारी काफी आवोभगत की और वहाँ हर हफ्ते /महीने आने का न्योता दिया....और इन्ही स्मृतिओं के आधार पर राजस्थान से इतना जुड़ गई हूँ की आज भी राजस्थान को मैं अपना दूसरा घर मानती हूँ ।
हमारा अगला पड़ाव  पास का एक दूसरा गाँव जहां बहुत बड़ी गोशाला थी ( पहली बार मैंने 7 तरह के गौ , उनके मंदिर , गौ तत्व से समान बनाने के प्रक्रिया देखी , सच कहूँ तो उस ट्रिप के बाद से ही मैंने स्वदेशी सामानो का उपयोग अपने जीवन में बढ़ा दिया था और अब जितना हो सकता है स्वदेशी चीज़ ही इस्तेमाल करती हूँ । इस आश्रम के पास जो दूसरा गाँव था वहाँ के गाँव वाले अपने सरपंच से खुश नहीं दिख रहे थे , घूमते समय देखा की अरावली की पर्वत शृंखला के नीचे बसे इस गाँव में गैर कानूनी पत्थर ( अरावली से ) काटने का काम भी तेज़ी से चल रहा है, सरपंच के साथ की बात में और मुद्दो के साथ जैसे की सफाई , शिक्षा इत्यादि के साथ  मैंने इस तरह उसका ध्यान आकर्षित किया तो उन्होने इससे कन्नी कट ली , सफाई पर उनका कहना था की हम नालियाँ साफ करवाते पर गाँव वाले इसमें कचरा डाल देते , गाँव वालों और सरपंच में जो घर की लड़ाई जैसी स्थिति स्पस्थ दिख रही थी...वो  साफ दिख रहा था और इस गृह युद्ध का कोई समाधान नहीं देखते हुए हमने एक कूटनीतिक कदम उठाया , हलाकी हमारे एनएसएस में लड़के भी थे, फिर भी हम पुरुष प्रधान समाज का धंभ को सीधे निशाना बनाने के लिए हम कुछ लड़कीओ ने  स्वयं  कुदाल /फावरा उठा लिया और सोचा की कम  से कम  1-2 नाले हम लड़कियाँ साफ कर दे , पर राजस्थान के लोगो में जो स्त्री जाती के लिए इज्ज़त था उसके कारण कुछ लोगो 5-7 मिनट बाद  हमारे पास आकार हमसे  फावरे ले लिया और बोला की वो लोग पंचायत के भरोसे नहीं रहेंगे और जहां रहते है वहाँ की सफाई खुद करेंगे। 
हमने  कुछ समान वितरण के बाद उनसे ये कहकर विदा लिया की आगे कभी भी उन्हे हमारे लायक कोई सेवा दिखे तो याद करे...... 
हम कॉलेज के स्टूडेंट्स थे , हमे नहीं पता की राजनीतिक लोग इन गरीबो के साथ कितनी सहनभूति दिखाते है पर कुछ लोगो ने वहीं हमे उनके गाँव के पंचायत-चुनाव  में खड़े होने का भी ऑफर दे दिया जिसे सुनकर मन विस्मित हो गया.... वापसी के  समय  मैं सोचने लगी थी की क्या चाहते है ये लोग बस थोड़ा सा प्यार , एक खुश हाल ज़िंदगी  , मुझे जैसे कॉलेज के स्टूडेंट को वोट बिना किसी प्रचार के देने को तैयार हो गए , वो भी १-२ दिन के काम पर , अगर हमारे राजनेता लोग वायदे करने के बजाये , पब्लिसिटी के बजाये इनके साथ कुछ समय बिताते , कुछ इनका दर्द बाँटते , इनके छोटे छोटे समस्या का समाधान करते तो चुनाव के समय असांविधानिक  तरीके से वोट खरीदने की जरुरत नहीं पड़ती।
प्रधान मंत्री और दूसरे सांसदों ने जो आदर्श ग्राम योजना के तहत  गॉव   सस्टेनेबल  ग्रोथ / डेवेलोपमेंट का सपना देखा है , अगर वो ठीक  भारत की तस्वीर बदल सकती है , सहायता करने के लिए हम youth  हर कदम पर आपको साथ साथ मिलेंगे ,पर हमे  वायदे नहीं सिर्फ सही काम दिखना चाहिए।

 जो काम हमने उन दिनों किया था किया वो अब सांसद ग्राम आदर्श योजना शाएद करे पर उन लोगो की साफ , सच्चे मन देखकर उनही दिनो के एक चाह दिल में आ गई , कम से कम उस मुकाम पर चली जाऊ जहां मेरे पास decision लेने की पावर हो , जहां मैं need based काम कर सकूँ 

(सन 2008-09 के स्मृतियों पर आधारित है)

जय हिन्द ! जय भारत 

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Pic: Devgarh fort, Sikar, Rajasthan

Tuesday, November 18, 2014

हिन्दी भाषिये क्षेत्रों में प्रसिद्ध - प्राचीनतम प्रथा – "दहेज प्रथा"

प्राचीन भारत में स्त्रियों का दर्जा काफी ऊपर था , वैदिक काल में पुरुषो के साथ महिलाओं को भी वेद पुराण धरम शास्त्र की शिक्षा दी जाती थी , वो कहीं भी पुरुषो से कम नहीं थी परंतु विदेशी आक्रांताओ के आने से नारियो के अस्तित्व पर काफी प्रभाव पड़ा , इतिहास के पन्नो से इसका प्रमाण तब मिलता है जब विक्रमादित्य के समय पुरुष और उच्च जाती के लोग संस्कृत का उपयोग करते थे और स्त्रियों को प्राकृत भाषा का प्रयोग करते पाया गया।
दहेज प्रथा तब किसी के ऊपर जबरन डाला नहीं जाता था , एक पिता अपनी क्षमतानुसार अपनी पुत्री को उसके भावी जीवन के लिए उपहार सहित विदा करता था। राजा महाराजाओ की क्षमता और आम आदमी की क्षमता अलग अलग थी , तो आम शब्दो में बोला जाए तो आम आदमी को पता था की उनकी औकात क्या है और उस हिसाब से वो मुह भी बेवजह नहीं खोलते थे। 
विदेशी आक्रांताओ के आने से लोगो ने स्त्री जाती को पर्दे में रखना शुरू किया ( कारण उन दिनों भी वही था जो आज के African देशो में देखने मिलता है, कोई भी युद्ध हुआ, सॉफ्ट टार्गेट हमेशा स्त्रियॉं थी , उनके इज्ज़त उतार कर पुरुष प्रधान समाज अपनी ताकत दर्शाते है ), और इस पर्दे के कारण औरतों की शिक्षा पर भी बुरा असर पड़ा। इसके बाद लड़की के लिए एक अच्छा वर तलाश करके अपने ज़िम्मेदारी उसे देते समय लड़की का पिता अपनी औकात से बढ़कर देने का रिवाज  शुरू किया । ध्यान देने योग्य बात ये है की शादी व मरण ही हिन्दू रीति के दो ऐसे त्योहार है जहां लोग कर्ज में डूब कर घी काढ़ते(पीते) है
पर मैं यह सोचती हूँ की आज 21st सदी में जहां लड़को के साथ फिर से लड़कियां भी कदम से कदम मिला कर पढ़ रही है वहाँ क्या अरैंज विवाह में बिना दहेज के बात नहीं हो सकती है क्या ?? हमारे साथ इंजीन्यरिंग के दिनो में कुछ सहपाठिओन की शादी जिस तरह पूरे लेन देन के साथ हुई उसे देख कर आश्चर्य होता है , मैंने एक से पूछा तुमने इतना क्यूँ दहेज  लिया , तो जबाब मिला क्यूंकी मैं इंजीनियर हूँ , तो मैंने उससे बोला तो मैं यहाँ क्या घास काट रही हूँ ?या वो लड़की को पढ़ने में उसके माँ बाप को पैसे नहीं लगे है  जो वो तुम्हें पैसे दे रही है।

दहेज दानव का असर हमारे समाज पर इस कदर छाया है की कल (16.10.2014) को मुझे एक लड़की के बारे में पता चला जो काफी अच्छे जगह काम कर रही है , शाएद काफी लड़को से अच्छा भी काम कर रही होगी, उसके पिता की मृत होने के पश्चात उनकी बड़ी बहन की शादी में माँ को परेशान देखकर  उन्होने जैन धरम की दीक्षा ले ली। पर सवाल ये है की क्या ये समाज यहाँ क्या ये सब करने बैठा है , कुछ भी करो नहीं की लोग क्या कहेंगे का शब्द पीछा करने लगता है , अरे हम लड़की है तो क्या अपनी मर्ज़ी से कुछ भी नहीं कर सकते है क्या 
हम लड़की है इसका ये मतलब नहीं की हम अपने माँ बाप पर बोझ है , आज एक लड़का अपने माँ बाप को कम पूछता होगा पर हम लड़कियों को काम के साथ पारिवारिक जीवन को बैलेन्स करना आता है और हम दहेज- दानवो  के शर्तों पर ज़िंदगी नहीं गुजरने वाले, अगर तुम दहेज लेने से बाज़ नहीं आओगे तो हम तुम्हारे समाज़ का बहिसकार कर सकते है।

अच्छा , दहेज की बात आई तो ये भी फिर से बता दूँ की सबकी रेट भी फिक्स होती है , लड़के ने अगर इंजीन्यरिंग / डाक्टरी कर ली तो 10-20 लाख उन्हे नगद दे दे और आगे आपकी श्रद्धा.....मतलब एक मिडिल क्लास का आदमी को कम से कम 50 लाख का खर्च। ...... आगे, अगर लड़का भारत सरकार के किसी प्रशानिक सेवा में हो तब तो आप करोड़ से कम सोचना भी मत , और करोड़ रुपेए का बक्सा तो भाई या तो राजनेता दे सकते है , या कुछ धानगद्य व्यक्ति जिनहे समाज में रुतवा खरीदने के लिए आईएएस/ आईपीएस (ias/ips) दामाद चाहिए। आश्चर्य की बात तो तब होती है जब कॉलेज में पढ़ते लड़के और ये परिक्षु सरकारी अधिकारी को अपने दाम का ब्योरा देते सुनती हूँ, कौन कितने में बिका या किसका कितना रेट है वो बताने में उन्हे फक्र होता है ।कई जगह गलती वधू पक्ष की भी होती है , कुछ रसूकदार लोग दामाद खरीदते है , जब मैं स्कूल  में थी उस समय एक चर्चा ज़ोरों पर थी , हमारे तरफ एक आम इंसान के बेटे को एक बड़ी प्रतिस्थि परीक्षा में बड़ी अव्वल रैंक आई थी , ( न मैं परीक्षा के बारे में कुछ बोलुंगी न उनके रैंक, बस घटना मेरे पैतृक राज्य की है जो gangetic-belt में आता है ) उसी समय एक बड़े भले मानस बड़ा सा सूटकेस में द्रवय /लक्ष्मी लेकर पाहुच गए दामाद खरीदने , अब  लक्ष्मी देखकर बड़े बड़े लोग का ईमान डोल जाता है , जो आम इंसान है उनकी बात क्या कहनी...... हमारे तरफ उसके बाद से ये प्रसिद्ध कहावत हो गया की उसने दामाद को लक्ष्मी/द्रवयसे तोल दिया.....आजतक मेरी समझ नहीं आया की ऐसे लोग बेटी की लिए अनुकूल पति ढूंढते है   या समाज को दिखने के लिए ....... खैर जो भी हो    समाज बोलता है की हम आगे बढ़ गए है पर सही मायने में हमारा समाज अभी भी बीच में अटका है , उस लड़की की तरह जो सलवार कमीज़ से जीन्स पर आ गई पर सिंगल पीस ड्रेस पहनने से अब भी हिचकती है ... सीधे पब्लिक एड्मिनिसट्रेशन के शब्दों में “ Our Society is a diffused society, we are trying to become modern but by thoughts our mindset has not changed to accept these changes”

लड़के वाले को कभी कभी यहाँ तक शरम नहीं आता की तुम अपने बेटे पर खर्च नहीं कर सकते हो लड़की वाले को क्या तुमने स्विस-अकाउंट धारी समझा है या बेटा पैदा होते ही सोच लिया था की इसे पढ़ाते है , फिर धकियानूसी समाज का नाम लेकर बेटे को बेच देंगे जिससे बुढ़ापा अच्छे से गुजरे  एक कारण बता दो की किसी का बेटा हो तो उसे दहेज मिलना चाहिए ? क्या किसी लड़की के घर वाले उसे पढ़ाते नहीं है ??  डाटा उठाकर देखिये , हर मिनट कोई न कोई दहेज से पीड़ित हो रह है। ( reported crime- 1 women murdered in every 20 minute in India, unreported- god only knows)

मुझे अब लगने लगा है की शादी जैसे पवित्र बंधन को सिर्फ पैसो पर तोलने वाले की तो आजकल बोलबाला है जो आज सिर्फ समाज को दिखाने के लिए रह गया है , आप या तो उचे ओहदे वालों को खरीदो या पैसे वालों को, और चार लोगो के सामने ताल थोक लो की बस हमसे (और जिनहे हम खरीदे है उनसे ) बेहतर कोई नही। और बस यही मानसिकता हम भारतीयो को मार देती है । माना कुछ लोग दहेज उत्पीड़न में लड़के वाले को भी फसाते है जो गलत है पर आज भी दहेज के मामले में कोई जायदा पीड़त है तो वो है नारी समाज और इससे ही जुड़ा है  मादा भ्रूण हत्या, बाल विवाह जैसी कुछ  कुरीतियाँ।
दहेज कुरीति है और इसके ऊपर श्री आमिर खान जी ने अपने शो सत्यमेव जयते में काफी बातें / केस स्टडीस बताई , उदाहरण दिये की समाज में कुछ बदलाव आए , सरकार में भी एंटि-डाउरी एक्ट पास किया , हर जिले में dowry- prohibition officer नियुक्त किए गए , पर वो कब अपना काम करते है और किस तरीके से मुझे आजतक पता नहीं चला।  अगर हमारी सरकार दहेज को रोक नहीं सकती तो दहेज़ के ऊपर भी लोन दे दे लड़की के परिवार को , इन्टरेस्ट फ्री लोन, और अगर इसमें भी कोई बाधा है तो marriage-expense management committe जैसे कुछ बना दे  ;)


मैं अपने परिवार का एक उदाहरण देना चाहूंगी। हमारे परिवार में जो इस तथाकथित हिन्दू वर्ण में  एक श्रेठ वर्ग माना जाता है और जहां दहेज का बहुत बोल बाला है वहाँ हमारे घर में सन १९९२ (1992) से कोई दहेज का लेन देन नहीं हुआ है , सीधे शब्दों में बोला जाता है की आप अपने बच्चे में जो कर सकते है करे, हम अपने में करेंगे और ये सारी शादियाँ बहुत ही अच्छी रही है , कुछ दिन पहेले हमारे घर हमारे ही समाज़ के एक महिला आई थी जो दहेज लेकर पछता रही थी , हमारे घर के लोगो ने उनसे सिर्फ इतना कहा की देखिये दहेज लेकर अगर शादी करोगे तो बहू आपकी माँ की तरह इज्ज़त नहीं करेगी पर अब पछताने से क्या होता है। दक्षिण भारत व नॉर्थ ईस्ट में भी ये समाज की कुरीति नहीं है और वो लोग  हमसे सोच व विचार में बेहतर हो गए है , उन्हे ये समझ आ गया है की रिश्ते बनते है , खरीदे नहीं जाते। 

पाठको से अनुरोध है की दहेज जैसे कुरीति रोकने पर अगर वो एकमत है तो अपने विचार,सुझाव के अलावा अपने आसपास इसे कुप्रथा को रोकने में भागीदार बने , ऐसे शादियो का बहिसकार करे या जो भी आपको उचित लगे।

जय हिन्द ! जय भारत

कावेरी सिंह










                               


जातिगत आरक्षण : एक विश्लेषण


भारत की आज़ादी के समय अमीर-गरीब के अलावा सवर्ण – दलित का भी काफी ज़ोर था, संविधान बनाते समय माननीने बाबासाहेब अंबेडकर ने “कमजोर- वर्ग” बोलकर ये उस समय साफ कर दिया था की उनकी नज़र में कमजोर व  पिछड़ा वर्ग का मतलब सिर्फ 'जाति' नहीं उससे कहीं जायदा था।
आज़ादी के बाद हमारे राजनेताओ ने संविधान का आदर करते हुए  10 साल की तय समय सीमा के अनुसार अनुसूचित जाती और जनजाति  को आरक्षण दिया पर  उसके बाद  संसद के गलियारों में बैठे लोगो ने सिर्फ  आरक्षण को बढ़ाया पर  पिछले 65 सालों से और   बढाते जा रहे है । उन्हे अब तक ये समझ नहीं आया की गलती कहीं न कहीं आरक्षण देने के तरीके में या उसे execute करने में है, अगर ऐसा नहीं होता तो आज ' "semi-nomadic tribes' भारत में इतने पिछड़े हालात में नहीं पाये जाते , जिन लोगो को, जिन जनजाति को सच में सरकार के देख रेख की जरूरत है उन्हे ये भी पता नहीं होगा की सरकार उन्हे लेकर कुछ सोच रही है , इसे हम क्या माने , सरकार की बेरुखी या कार्यकारी लोगो की अनदेखी। मैंने  झारखंड प्रदेश  के बोकारो स्टील नगर से अपनी स्कूल की शिक्षा पाई है और उसके बाद जिस जिस महानगर गई वहाँ यही देखा की जिनहे जरूरत है उन आदिवासियो को तो कोई लाभ मिल ही नहीं रहा , जंगलों से human-trafficking होती है लड्कीओ के , as a source of cheap labour,the child are either thrown away in child labour business or in  sex racket। और अगर सच में सरकार के आरक्षण से कोई फर्क पड़ता तो आज महानगरों में ये काम करने वाले एजेंटस की तादाद बदती न जाती । दुख होता है उनकी हालात देखकर जहां 12-20 घंटे उन्हे काम करना होता है, कौन सा labour law उनके लिए काम आ रहा है ।

सन के बाद  आरक्षण २३% से बढ़ाकर ५० %..... आरक्षण की वस्तुतः तरीका ये है की किसी प्रतियोगी परीक्षा में age-relaxation के साथ मार्क्स भी उन्हे कम लाने पर अच्छे पोस्ट मिलते है, क्यूँ ?? कोई एक relaxation देने से काम नहीं चल रहा है है क्या ??
 पर मूलतः अब आरक्षण पिछड़े वर्गो को आगे बढ़ाने के उद्देश से नहीं , सिर्फ राजनीति लाभ के लिए सिकुड़ कर रह गया है। चुनाव के समय एक सिनेमा बनी थी , भूतनाथ रिटर्न्स जिसमें ये गरीबो के समस्या को बहुत अच्छे से दर्शाया गया है।  मनीनेय नेतागण , या जो भी  लोग अपने राजनीतिक उददेशों के रोटी सेकने में जातिगत- आरक्षण का पुरजोर समर्थन करते है, उनसे मैं सिर्फ इतना पूछना चहुंगी की सरकार ये बता दीजिये की “गरीबी क्या जाति पुछ कर आती है” अगर नहीं तो आज़ाद भारत में किस आधार पर आप सिर्फ एक वर्ग के लिए आरक्षण दिये जा रहे हो? जहाँ लाखो योजनाए चल रही है वहाँ आप क्या भारत में “Quality-education- Free of Cost to all students upto १२th or graduation” नहीं दे सकते हो क्या ? उसके बाद जो इंसान जहां , जिस क्षेत्र में काम करना चाहे वहाँ के लिए उसे प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने दे  , पर  बिना किसी आरक्षण के.........

मेरे काफी मित्र व कुछ राजनेताओं के मुह से ये सुना है की सवर्णों ने दलितो का शोषण किया है इसलिए उन्हे आरक्षण मिलना चाहिए। मुझे ये बताए कितने राजघराने थे भारत में ? अभी भी सशक्त राजघराने के लोग महलों में ऐश करते है और पिस्ते है आम आदमी।  इतिहास के अनुसार 12th AD – 19th AD गुलाम वंश, मुगल वंश व ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत का खून चूसा और इल्ज़ाम सिर्फ हिन्दू जाति के कुछ जातियो पर?? और किसी ने शोषण भी किया तो एक फ़ैमिली ने किया होगा न की पूरे जाति ने। और आज लोकतन्त्र और नयाय के युग में कहाँ लिखा है की बाप के अपराध की सज़ा उनकी पूरी आने वाले नस्लों को दो।  आगे बात ये है की   हिन्दू जाति को छोरकर मनसबदार , जगीरदार और भी जाति के लोग रहते थे जिनमें से एक को (जिनके पश्चमि भारत मे रजवारे थे) चुनाव से ठीक पहले पिछड़ी जाति में शामिल किया गया। हिन्दू जाति के कुछ सब-सेक्शन को छोरकर जो अनारक्षित है और दूसरी जाति आते है सब अा गए अल्पसंखयक में , तो आप नेतागण चाहते क्या है की हिन्दू समाज का सिर्फ कुछ वर्ग आपकी राजनीति चक्की में पीसकर रह जाए?? 

समाजशास्त्र की किताबें देखिये, काफी विचरवानों ने ये कहा है की “THE SOCIAL STRATA HAS CHANGED & NOW The Class WHO WERE AT BOTTOM ARE AT TOP” ।
कुछ नेताओ का कहना है की हम दलितो के vote पर संसद आए है तो उनका साथ नहीं छोर सकते । सरकार आपसे साथ छोरने किसने कहा है ,

“IGNORANCE/POVERTY is BLISS FOR POLITICS & YOU PEOPLE ARE PROVING THIS EVERYDAY by encashing emotions of Poors”

I personally believe there are only two religion on earth, a. Rich and B. Poor. For poor, religion is opium-something on which they blame their irrationality and for rich religion is rationality. 

 आज हमारे देश में कोई vote जाति के आधार पर मांगता है कोई अपनी cabinet का कुछ हिस्सा जातिगत आधार पर बाटता है और बोलते  है की हम भारत के लिए कर रहे है। एक महान संस्थान के प्रमुख एक तरह हिन्दू को जोड़ने की बात करेंगे और दूसरे तरफ जातिगत आरक्षण। पंडितजी अंतरजातिए विवाह व जातिगत आरक्षण एक साथ नहीं चलेगी , यहाँ तो honor- Killing हो जाती है।

सरकार  बोलती है की CAD( Current Account Deficiet), FD( Fiscal Deficit) बढ़ रहा है , Brain-Drain हो रहा हैं ......वगैरह-वगैरह ........अौर क्यो न हो अधिकतर जगह तो और आपकी पॉलिसी ही इसके लिए जिम्मेदार है। और रही बात की पैसा नहीं है तो अनुसूचित जनजाति में जो लोग धनगढ़ है ,कारोरपति है उन्हे आयकर विभाग से आय कर न देने पर छूट क्यूँ है ? आजतक हमारे वित मंत्री Indirect tax का भार आम आदमी से हटा नहीं पाये और फिर भी उन्हे छूट दिये जा रहे है । किसी विशेस जाति में होने पर क्या आपको संविधान इसकी छूट देता है क्या की आप सिर्फ भारत से लेते रहे और एक कर भी न दे। 

अचंभित हूँ चल क्या रहा है राजनीतिज्ञ गलियारो में ??? ऐसे करने पर भारत को विश्वशक्ति बनाने के संपने देखे जा रहे है तो भूल जाएए। आज एक नेता भी खुलकर इस मुद्दे पर बात नहीं करता, उन्हे डर है की उनकी गद्दी चली जाएगी , कोई भी राजनीति दल हो , बस बोलेंगे की हम सेकुलर है पर सेकुलरिस्म की खाल खीच ली है इनहोने , कोई मुस्लिम की पार्टी बनकर रह गई है , कोई दलितो का महिसा, कोई पिछरित वर्गो का और कोई सवर्णों का। भारत की पार्टी साएद ही बनी है।

इस मुद्दे पर कई लोग खुलकर विरोध कर रहे है, जिनहे media से 'न' के बराबर ही सहयोग मिलता है , ऐसे ही कुछ लोगो के संपर्क में मैं FB के जरिये आई। मैं उनके आंढोलन का पूर्णटह सहयोग करती हूँ..... इसलिए नहीं की मुझे आरक्षण से दिक्कत है पर इसलिए क्यूंकी अब आज़ादी की 66 सालों बीत जाने के बाद भी आप उनके लिए कुछ नहीं कर पाये, आज भी गरीबी है, और गरीबी अब एक वर्ग को छोरकर महामारी की तरह और जातियो को भी जकड़ रखा है , पर आपकी नीति नहीं बदल रही , आप अमीर गरीब के बीच के दूरी को खत्म करे , उन्हे पढ़ाये , उनकी मानसिकता का विकास करवाए ,  समानता खुद आ जाएगी।

यह पोस्ट किसी पार्टी की खिलाफ नहीं नहीं है व अगर भारत सरकार का कोई भी नुइमिंदा इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ रहा है तो उनसे एक ही निवेदन है की जहां लोग निर्णय लेते है वहाँ भी इस बात को पाहुचाए की आम लोगो में और भी काफी मुद्दे पर रोष है, आप आरक्षण जरूरु दो पर जाति के आधार पर नहीं , जिनहे जरूरत है उन्हे। गरीबी की जात नहीं होती और मैंने सवर्णों को भी पेट काटते देखा है।

"समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र,
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध।"
जय हिन्द , जय भारत

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                                 बताना किस जाती के बच्चे है ये??