Tuesday, November 18, 2014

हिन्दी भाषिये क्षेत्रों में प्रसिद्ध - प्राचीनतम प्रथा – "दहेज प्रथा"

प्राचीन भारत में स्त्रियों का दर्जा काफी ऊपर था , वैदिक काल में पुरुषो के साथ महिलाओं को भी वेद पुराण धरम शास्त्र की शिक्षा दी जाती थी , वो कहीं भी पुरुषो से कम नहीं थी परंतु विदेशी आक्रांताओ के आने से नारियो के अस्तित्व पर काफी प्रभाव पड़ा , इतिहास के पन्नो से इसका प्रमाण तब मिलता है जब विक्रमादित्य के समय पुरुष और उच्च जाती के लोग संस्कृत का उपयोग करते थे और स्त्रियों को प्राकृत भाषा का प्रयोग करते पाया गया।
दहेज प्रथा तब किसी के ऊपर जबरन डाला नहीं जाता था , एक पिता अपनी क्षमतानुसार अपनी पुत्री को उसके भावी जीवन के लिए उपहार सहित विदा करता था। राजा महाराजाओ की क्षमता और आम आदमी की क्षमता अलग अलग थी , तो आम शब्दो में बोला जाए तो आम आदमी को पता था की उनकी औकात क्या है और उस हिसाब से वो मुह भी बेवजह नहीं खोलते थे। 
विदेशी आक्रांताओ के आने से लोगो ने स्त्री जाती को पर्दे में रखना शुरू किया ( कारण उन दिनों भी वही था जो आज के African देशो में देखने मिलता है, कोई भी युद्ध हुआ, सॉफ्ट टार्गेट हमेशा स्त्रियॉं थी , उनके इज्ज़त उतार कर पुरुष प्रधान समाज अपनी ताकत दर्शाते है ), और इस पर्दे के कारण औरतों की शिक्षा पर भी बुरा असर पड़ा। इसके बाद लड़की के लिए एक अच्छा वर तलाश करके अपने ज़िम्मेदारी उसे देते समय लड़की का पिता अपनी औकात से बढ़कर देने का रिवाज  शुरू किया । ध्यान देने योग्य बात ये है की शादी व मरण ही हिन्दू रीति के दो ऐसे त्योहार है जहां लोग कर्ज में डूब कर घी काढ़ते(पीते) है
पर मैं यह सोचती हूँ की आज 21st सदी में जहां लड़को के साथ फिर से लड़कियां भी कदम से कदम मिला कर पढ़ रही है वहाँ क्या अरैंज विवाह में बिना दहेज के बात नहीं हो सकती है क्या ?? हमारे साथ इंजीन्यरिंग के दिनो में कुछ सहपाठिओन की शादी जिस तरह पूरे लेन देन के साथ हुई उसे देख कर आश्चर्य होता है , मैंने एक से पूछा तुमने इतना क्यूँ दहेज  लिया , तो जबाब मिला क्यूंकी मैं इंजीनियर हूँ , तो मैंने उससे बोला तो मैं यहाँ क्या घास काट रही हूँ ?या वो लड़की को पढ़ने में उसके माँ बाप को पैसे नहीं लगे है  जो वो तुम्हें पैसे दे रही है।

दहेज दानव का असर हमारे समाज पर इस कदर छाया है की कल (16.10.2014) को मुझे एक लड़की के बारे में पता चला जो काफी अच्छे जगह काम कर रही है , शाएद काफी लड़को से अच्छा भी काम कर रही होगी, उसके पिता की मृत होने के पश्चात उनकी बड़ी बहन की शादी में माँ को परेशान देखकर  उन्होने जैन धरम की दीक्षा ले ली। पर सवाल ये है की क्या ये समाज यहाँ क्या ये सब करने बैठा है , कुछ भी करो नहीं की लोग क्या कहेंगे का शब्द पीछा करने लगता है , अरे हम लड़की है तो क्या अपनी मर्ज़ी से कुछ भी नहीं कर सकते है क्या 
हम लड़की है इसका ये मतलब नहीं की हम अपने माँ बाप पर बोझ है , आज एक लड़का अपने माँ बाप को कम पूछता होगा पर हम लड़कियों को काम के साथ पारिवारिक जीवन को बैलेन्स करना आता है और हम दहेज- दानवो  के शर्तों पर ज़िंदगी नहीं गुजरने वाले, अगर तुम दहेज लेने से बाज़ नहीं आओगे तो हम तुम्हारे समाज़ का बहिसकार कर सकते है।

अच्छा , दहेज की बात आई तो ये भी फिर से बता दूँ की सबकी रेट भी फिक्स होती है , लड़के ने अगर इंजीन्यरिंग / डाक्टरी कर ली तो 10-20 लाख उन्हे नगद दे दे और आगे आपकी श्रद्धा.....मतलब एक मिडिल क्लास का आदमी को कम से कम 50 लाख का खर्च। ...... आगे, अगर लड़का भारत सरकार के किसी प्रशानिक सेवा में हो तब तो आप करोड़ से कम सोचना भी मत , और करोड़ रुपेए का बक्सा तो भाई या तो राजनेता दे सकते है , या कुछ धानगद्य व्यक्ति जिनहे समाज में रुतवा खरीदने के लिए आईएएस/ आईपीएस (ias/ips) दामाद चाहिए। आश्चर्य की बात तो तब होती है जब कॉलेज में पढ़ते लड़के और ये परिक्षु सरकारी अधिकारी को अपने दाम का ब्योरा देते सुनती हूँ, कौन कितने में बिका या किसका कितना रेट है वो बताने में उन्हे फक्र होता है ।कई जगह गलती वधू पक्ष की भी होती है , कुछ रसूकदार लोग दामाद खरीदते है , जब मैं स्कूल  में थी उस समय एक चर्चा ज़ोरों पर थी , हमारे तरफ एक आम इंसान के बेटे को एक बड़ी प्रतिस्थि परीक्षा में बड़ी अव्वल रैंक आई थी , ( न मैं परीक्षा के बारे में कुछ बोलुंगी न उनके रैंक, बस घटना मेरे पैतृक राज्य की है जो gangetic-belt में आता है ) उसी समय एक बड़े भले मानस बड़ा सा सूटकेस में द्रवय /लक्ष्मी लेकर पाहुच गए दामाद खरीदने , अब  लक्ष्मी देखकर बड़े बड़े लोग का ईमान डोल जाता है , जो आम इंसान है उनकी बात क्या कहनी...... हमारे तरफ उसके बाद से ये प्रसिद्ध कहावत हो गया की उसने दामाद को लक्ष्मी/द्रवयसे तोल दिया.....आजतक मेरी समझ नहीं आया की ऐसे लोग बेटी की लिए अनुकूल पति ढूंढते है   या समाज को दिखने के लिए ....... खैर जो भी हो    समाज बोलता है की हम आगे बढ़ गए है पर सही मायने में हमारा समाज अभी भी बीच में अटका है , उस लड़की की तरह जो सलवार कमीज़ से जीन्स पर आ गई पर सिंगल पीस ड्रेस पहनने से अब भी हिचकती है ... सीधे पब्लिक एड्मिनिसट्रेशन के शब्दों में “ Our Society is a diffused society, we are trying to become modern but by thoughts our mindset has not changed to accept these changes”

लड़के वाले को कभी कभी यहाँ तक शरम नहीं आता की तुम अपने बेटे पर खर्च नहीं कर सकते हो लड़की वाले को क्या तुमने स्विस-अकाउंट धारी समझा है या बेटा पैदा होते ही सोच लिया था की इसे पढ़ाते है , फिर धकियानूसी समाज का नाम लेकर बेटे को बेच देंगे जिससे बुढ़ापा अच्छे से गुजरे  एक कारण बता दो की किसी का बेटा हो तो उसे दहेज मिलना चाहिए ? क्या किसी लड़की के घर वाले उसे पढ़ाते नहीं है ??  डाटा उठाकर देखिये , हर मिनट कोई न कोई दहेज से पीड़ित हो रह है। ( reported crime- 1 women murdered in every 20 minute in India, unreported- god only knows)

मुझे अब लगने लगा है की शादी जैसे पवित्र बंधन को सिर्फ पैसो पर तोलने वाले की तो आजकल बोलबाला है जो आज सिर्फ समाज को दिखाने के लिए रह गया है , आप या तो उचे ओहदे वालों को खरीदो या पैसे वालों को, और चार लोगो के सामने ताल थोक लो की बस हमसे (और जिनहे हम खरीदे है उनसे ) बेहतर कोई नही। और बस यही मानसिकता हम भारतीयो को मार देती है । माना कुछ लोग दहेज उत्पीड़न में लड़के वाले को भी फसाते है जो गलत है पर आज भी दहेज के मामले में कोई जायदा पीड़त है तो वो है नारी समाज और इससे ही जुड़ा है  मादा भ्रूण हत्या, बाल विवाह जैसी कुछ  कुरीतियाँ।
दहेज कुरीति है और इसके ऊपर श्री आमिर खान जी ने अपने शो सत्यमेव जयते में काफी बातें / केस स्टडीस बताई , उदाहरण दिये की समाज में कुछ बदलाव आए , सरकार में भी एंटि-डाउरी एक्ट पास किया , हर जिले में dowry- prohibition officer नियुक्त किए गए , पर वो कब अपना काम करते है और किस तरीके से मुझे आजतक पता नहीं चला।  अगर हमारी सरकार दहेज को रोक नहीं सकती तो दहेज़ के ऊपर भी लोन दे दे लड़की के परिवार को , इन्टरेस्ट फ्री लोन, और अगर इसमें भी कोई बाधा है तो marriage-expense management committe जैसे कुछ बना दे  ;)


मैं अपने परिवार का एक उदाहरण देना चाहूंगी। हमारे परिवार में जो इस तथाकथित हिन्दू वर्ण में  एक श्रेठ वर्ग माना जाता है और जहां दहेज का बहुत बोल बाला है वहाँ हमारे घर में सन १९९२ (1992) से कोई दहेज का लेन देन नहीं हुआ है , सीधे शब्दों में बोला जाता है की आप अपने बच्चे में जो कर सकते है करे, हम अपने में करेंगे और ये सारी शादियाँ बहुत ही अच्छी रही है , कुछ दिन पहेले हमारे घर हमारे ही समाज़ के एक महिला आई थी जो दहेज लेकर पछता रही थी , हमारे घर के लोगो ने उनसे सिर्फ इतना कहा की देखिये दहेज लेकर अगर शादी करोगे तो बहू आपकी माँ की तरह इज्ज़त नहीं करेगी पर अब पछताने से क्या होता है। दक्षिण भारत व नॉर्थ ईस्ट में भी ये समाज की कुरीति नहीं है और वो लोग  हमसे सोच व विचार में बेहतर हो गए है , उन्हे ये समझ आ गया है की रिश्ते बनते है , खरीदे नहीं जाते। 

पाठको से अनुरोध है की दहेज जैसे कुरीति रोकने पर अगर वो एकमत है तो अपने विचार,सुझाव के अलावा अपने आसपास इसे कुप्रथा को रोकने में भागीदार बने , ऐसे शादियो का बहिसकार करे या जो भी आपको उचित लगे।

जय हिन्द ! जय भारत

कावेरी सिंह










                               


3 comments:

  1. well you may not blame only the foreigners for the dowry system.
    event in the vedic period (2500 years before approx or 500 BC) it exist . it started by our kings they use marriage relationships for political and military alliances.
    yes I agree that in vedic period there were little freedom for women they can participate education and many of other activities(some of the women contributed in the writing of vedic grantha) but even in that time women did not have right to property. which make dependent on men and later this dependency downgraded their status.
    So till 100 to 400 AD (approx 1600-1900 year before ) women lost their many rights and became more dependent on men . because even women in hindu society considered as goddess there is also phenomenon of Pati-parmeshwar (husband as god) which make their status lower to only server the husband and follow his order. we can see the proof of Sati system in the 4th century AD. then it got lower and lower further and Yes dowry exist at large in that time.
    but If you talk about the worst situation for women right . I am agree here with your view that after the muslim come here there was Purdah system start which make women more under the more strict restriction. but it is not the sole fault of the muslim because hindu society not oppose it rather they accept it because that time hindu society was also male dominated society and Purdah system give males another tool to impose more authority over women.
    and what I say that today arrange marriages are the prime reason for the continuation of dwory system in India in these arrange marriage where no body cares about the feeling of girl and boy but they are busy in calculating the monitory benefits just like bloody business.
    where indian parents prefer their daughters to be killed and tortured for dowry but the torture should come from the same caste only.. that is the hypocrisy.
    So if we will able to able to stop caste based arrange marriage thn will simply able to abolish that killing dwory system.

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    1. true..people now should choose their life partner on basis of their compatibility without seeing caste/region/religion...else the silly caste system will nvr end.

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    2. I have hope that It will end, may be not so soon, but It will end.
      because due to globalization and modern dynamic societal condition rather than previous stagnant society with caste and community boundaries where previously even the most of friends and business happen under these boundaries.
      Now interaction of people increased with other communities let's say that now we all have friends of different caste, religion and communities and other social relation where caste not even and business not have boundary of community.
      so when we start interacting then we start understanding each other and distance start reducing between different caste, religion and communities..
      Also in the era of globalization and internet we are also interacting with the societies of other nation and system of there where caste and communities not even matters and also women enjoying the freedom as men and participating in the development and progress of family, society and nation.
      Now we start rationalizing the things and promoting social change. So even it will take time but I hope that we will able to eradicate the caste system and gender discrimination and treat people as human rather then on the basis on caste and gender and respect their rights.

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