Friday, December 26, 2014

दिल्ली के आम आदमी और mufflerman

सर्दियाँ दिल्ली में अचानक से बढ़ गई थी, और मेरा geyser काम नहीं करने पर  मैंने अपने पीजी की आंटी को  इसे ठीक करवाने बोला। ये सब काम उनके ड्राईवर हैंडल करते है जिनसे जब भी मुलाक़ात होती तो थोड़ी बहुत दिल्ली की राजनीति पर बातें  हो जाती है। उस दिन  भैया  ने  ने मुझसे पूछा की इस बार दिल्ली में आप किसे वोट दोगे , मैंने स्पस्ट उत्तर दिया की बीजेपी अगर दिल्ली के मुख्यमंत्री  के ऊमीद्वार में श्री हर्षवर्धन जी को खड़ा करे तो उन्हे या फिर NOTA। इसपर उन्होने  मुझसे बोला की दीदी आप लोग दिन भर ऑफिस में रहते हो , AC लगे रहते है वहाँ, आपके काम करने के लिए अनुकूल माहौल होगा ,  आपलोगो को शायद ही कभी पुलिस से या सरकारी दफ्तरों से में किसी काम से जाना होता होगा...हमारे घर पर केटरिंग का बिजनेस है और हर समय कुछ पुलिस को देना होता है......आपको विविश्वास नहीं तो औरों से खुद बात करके देख लेना।   49 दिन में केजरीवाल जी के जाने से मैं भी काफी दुखी थी और इस बात की सच्चाई जानने के लिए मैंने कुछ दिनो तक लगातार   खाली समय में   ठेला वाले, रिक्शा वाले , ऑटो वालों से बात करके जमीनी स्थिति को उनके नज़र से देखना शुरू  किया ।मैंने उनसे पूछना शुरू किया की कब से दिल्ली में रहते हो , यहाँ दुकान कब से लगा रहे हो,और भाई इस आप किसे और क्यूँ   मुख्य मंत्री  के रूप में देखना चाहते हो।
90% लोगो जो इन श्रेणी से आते है उनके मत में उन्हे अपना मुख्य मंत्री केजरीवाल जी चाहिए।क्यूँ के जवाब में मुझे वही उत्तर मिला जो मेरे पीजी के भैया ने मुझे बताया था।एक ऑटो वाले (साउथ दिल्ली इलाके का ) को अपनी  लाल  ration कार्ड बनवाने के लिए कितने साल चक्कर काटने पड़ते है , और आज भी उसे लाल राशन कार्ड नहीं मिला,अब उसे सफ़ेद राशन कार्ड मिला है जिसका उसके लिए कोई लाभ नहीं है। वो ऑटो वाला रास्ते भर सरकारी तंत्रो पर ऐसे कटाक्ष कस रहा था जिससे मुझे पीड़ा महसूस हो रही थी।  हर हफ्ते नयी जगह बाजार लगाने वालों के भी बाज़ार लगाने पर राते फिक्स है। मेरे घर एक ब्युटिशीयन आती है जो कम उम्र में विधवा हो गई पर विधवा कार्ड के लिए अगर कोई ये पूछे की आप तो विधवा नहीं दिखती तो क्या बीतती होगी वो मैं भी नहीं बता सकती , वो लड़की स्वाभिमानी थी तो अपने बच्चो का पालन पोषण लोगो के घर घर जाकर ब्युटिशीयन का काम करके कर लेती है पर ये सरकारी तंत्र में कमी नहीं तो और क्या है ।  कुछ लोग का मत अब भी था की केंद्र में हमने भी मोदी को मत दिया था पर दिल्ली में केजरीवाल से जायदा और कोई उनके लिए नहीं कर सकता। मुझे काफी हैरानी हुई , मैंने दुबारा पूछा की आपको लगता नहीं की केंद्र और राज्य की सरकार अलग है तो इससे लोग और पिस जाएंगे पर उनका समर्पण देखकर मैं स्तब्ध रह गई।  उन लोगो के हिसाब से आज केंद्र सरकार द्वारा इतने बिल व कानून पास होने के बावजूद उन्हे एक ठेला लगाने के लिए पुलिस को पैसे देने होते , अपनी व्यापार करने की क्षमता से लोगो के रेट फिक्स है , फेरीवाला के 200 रुपेए हर दिन के और कपड़ा बेचने वालों के कुछ जायदा .....समान को कहीं ले जा रहा है तो उसका अलग से कुछ देना होता है। मुझे ये नहीं पता है की ये पैसे लेना कितना जाएज है परंतु अगर ये सही होता तो 49 दिनो वाली केजरीवाल के सरकार में ऐसा नहीं होता की इन्हे पैसे नहीं देने पड़ते। उनके शब्दों में उन्हे 49 दिन तक किसी पुलिस वाले ने , सरकारी बाबू ने तंग नहीं किया , उन्हे लगा की उनकी बात लोग सुन रहे है और उनके काम हो रहे है ,उनके काम होने लगे थे और अचानक केजरीवाल जी ने इस्तीफा दे दिया जिससे उन्हे धक्का लगा पर फिर भी उन्होने ने एक बार और उन्हे मौका देने का सोचा है। मुझे अब लगने लगा था की मेरे पीजी के ड्राईवर भैया ने कुछ गलत नहीं बोला था । उनकी बात और आँखों में सच्चाई देखकर थी और इसलिए मैंने खुद  इस बात को परखना उचित समझा  और मुझे भी लगता है की अगर हर किसी को दूसरा मौका मिलता है , केजरीवाल जी को भी देना बनता है ,अपने लिए लिए नहीं तो उन लोगो के लिए जिनके चेहरे पर खुशी देखकर एक अलग सा सुकून  मुझे मिलता है, गुड गवर्नेंस केजरीवालजी  लाये या मोदीजी मुझे उससे फर्क नहीं पड़ता, मेरा सपना तो एक socialist सोसाइटी का है, जहां सब समान हो 

हमारे देश में सरकारी तंत्र की जो वर्तमान स्थिति है और काम के हिसाब से जो पैसे मिलते है उनमें ये करना कोई नई बात नहीं है, सत्ता पक्ष खुद को सर्वोपरि मानने लगती है और पूरा तंत्र उन्हे देवता मानकर उनकी पुजा करता है । 2nd ARC रिपोर्ट में पुलिस व bureaucracy को पुनर्गठित करने के लिए कितने ही अच्छे सलाह है जो कोई भी  सरकार नहीं कर रही है , और इसके परिणाम स्वरूप पिस्ता है आम आदमी , या तो पुलिस की वर्दी के पीछे जिसके लिए घर चलाने को उसकी दरमाह काफी नहीं है ,जो काम तो करते है पर उन्हे वो इज्ज़त नहीं मिलती जो उन्हे मिलनी चाहिए  या फिर ये फेरी वाले  जो कम से कम भीख नहीं मांगकर अपने परिवार के लिए हर परिस्थिति से लड़ रहे है।
दोषी यहाँ मैं पुलिस को भी नहीं मनुगी.....पर इस परिस्थिति के लिए क्या जिम्मेदार है वो सरकार खुद आतमन्थन करे। मोदी लहर पूरे देश में भले भी चल रही है ( और मैं भी उनका काफी सम्मान करती हूँ ) पर सत्ता पक्ष जब तक इन लोगो के लिए योजनाएँ बनाने के अलावा वो काम नहीं करती जिनसे इनकी जमीनी  स्थिति  सही मायने में सुधरे तब तक सत्ता पक्ष को सफल नहीं माना जा सकता है।

"Good Governance is more than mere formulating slogans and schemes without restructuring proper mechanism to implement them."

वंदे माँ भारती ! जय हिन्द !!


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