Wednesday, December 3, 2014

लूटता बचपन,गैर कानूनी मानव व्यापार व टैक्स की चोरी

 “दीदी आज मेकों आइस-क्रीम  खाना है! दीदी मुझे चिकेन बनाकर खिला दोगे?” दीदी आप फ्री हो जाओ तो बताना मुझे आगे पढ़ना सिखा दो !!” - कभी ये शब्द प्रश्नवाचक होते , कभी विनतिपूर्वक व कभी हक़ से परिपूर्ण.....
ऑफिस से पीजी (PG) पहुचते ही ऐसे ही  समय कुछ वाक्य व इन बच्चो के गुजर जाता  है। इन बच्चो का बचपन ऐसे व्यर्थ होते देख मन कचोट जाता है...कभी कभी इन बच्चो का काम करने का मन न करे तो डांट भी पड़ती है और कुछ लोग छोटी-छोटी बातों पर हाथ भी उठा देते है , ये भूलकर की ये बच्चे है ,अगर ये कहीं काम कर रहे है तो इनकी मजबूरी है .....नहीं तो कौन माँ बाप ख़ुशी से अपने बच्चो को दूर देश कमाने भेज सकता है ?सोचती हूँ  कहाँ भेज दूँ इन्हे जहां इनका  बचपन सुधर सके......हम भी कभी बच्चे थे , माँ बाप के दुलारे , घर का काम भी पापा नहीं करने देते थे , बोलते थे पहले पढ़ो , और सारे काम बाद में सीखे जा सकते है, ( मैं फिर भी पापा के क्लीनिक जाने के बाद माँ से कुछ कुछ बनाना सीखती थी :P ) मैं ये सब क्यूँ सोचती हूँ मुझे भी नहीं पता , पर ये सब देख कर अनदेखा भी नहीं कर पाती। 

 मैं दिल्ली के एक पीजी में रहती हूँ ,ये इलाका विद्यार्थियों का है इसलिए हर गली में कोई न कोई पीजी , ढाबा मिल जाता है और साथ में वहाँ काम करते हुए छोटे छोटे मासूम बच्चे जो दयनीए स्थिति में अपनी खुशी ढूंढने का प्रयास करते दिख जाते है......अधिकतर बच्चे / व्यसक  जिनसे मैंने बात की वो बिहार , झारखंड, ओड़ीशा व उत्तर पूर्वी भारत के गरीब इलाको से लाये गए होते है , बड़ी चालाकी से ऐसे बच्चे यहाँ लाये जाते है जिनके घर पर उन्हे खाने को दो ज़ून की रोटी नसीब नहीं होती, उन्हे लाने के पीछे कारण शायद ये है की काम करने के बाद ये जितना खाते है इन्हे खाने दो , पेट भरते रहने पर ये कहीं जाएंगे नहीं।
पीजी में जो बच्चे या तो व्यसक एजेंट के जरिये लाये गए है, या वो खुद भागकर अच्छे खान पान , चमक देख कर दिल्ली आ जाते है।  सरकार के अधिकतर योजनाये होती तो है अनुसूचित जाती- जातियो के लिए परंतु जिनहे इसकी सच में जरूरत है उन तक कभी नहीं पहुच पाती । बच्चो को घर पर खाना नहीं मिलता , कपड़ा नहीं मिलता और यहाँ उन्हे सब मिल जाता है तो वो घर से भाग कर खुद एजेंट के पास चले आते।एक मज़ेदार बात और ये भी पता लगी की कुछ के माँ ने 2-4 शादियाँ कर ली थी व पिताजी ने 4-5 तो कौन किसके बच्चे है इस  संदेह में वो पीस जाते थे। अब ऐसे vulnerable बच्चो को अगर पेट भरके खाना 3-4 समय मिले तो उन्हे और क्या चाहिए  होगा । एक आदिवासी  लड़की (15-18 साल ) को पंजाब में कहीं नए नाम के साथ भेज दिया गया था जहां उससे काफी काम करवाया जाता था, फिर वो अमृतसर के किसी डॉक्टर दम्पति  के घर लगी , एक दिन मौका पाकर उसने हमारे पीजी के मालकिन को फोन किया व संक्षेप में सारी कहानी सुनकर वापस ले जाने को कहा ,इस बात से मुझे बहुत खुशी हुई की कुछ दिनों के  के अंदर हमारी पीजी के मालकिन उसे वापस ले आई और अब वो हम सबके साथ रहकर खुश है..... अब पहचान छुपाने की जरूरत किसी भले कारण के लिए तो कोई करता नहीं है , आगे पाठकगण  स्वयं समझदार  है ।
इन लोगो को मैं न दस्यु बोलुंगी न बंधुआ मजदूर , ये कम पैसो पर काम करने वाले है , जिनकी मजबूरी का फायदा हमारे समाज के ऊपरी वर्ग के लोग उठा रहे है , हर कोठी के आराम तलब ज़िंदगी के पीछे ये लोग ही तो है।
इन लोगो को देख कर कई बार मेरी कलम उठी व लेटर ड्राफ्ट किया पर पोस्ट करने की हिम्मत नहीं हुई , इसलिए नहीं की मुझे पुलिस से डर लगता है पर इसलिए क्यूंकी अगर मैंने इन्हे यहाँ से निकाल भी दिया तो आगे क्या ? क्राइम पट्रोल जैसे नाटक देखकर जहां इनके rehabilitation सेंटर पर बढ़ते अपराध दर  को देख कर डरती हूँ की कहीं इनके लिय कुछ करने के चाह में इनका बचपन न छिन जाए। स्किल develop करवाने के चक्कर में कुछ गलत न हो जाए , यहाँ इस पीजी में सिर्फ लड़कियां रहती है , इनके जैसे कुछ और आदिवासी लोग भी है जिनके साथ ये थोड़ा हँस-खेल लेते है। 

Human trafficking, child labour, tax evasion+Black Money, Beggary, illegal organ trading और न जाने क्या क्या एक दूसरे से ऐसे जुड़े है की बिना इंटेगेरटेड अप्रोच के बिना इन बच्चो का बचपन इन्हे वापस नहीं मिल सकता इन बच्चो को देखकर मन सोचने को मजबूर हो जाता की कहाँ गई हमारे देश की बड़ी बड़ी योजनाएँ?
कहाँ गए इनके लिए बनाए गए 27 % का आरक्षण ? ये बेचारे तो अपना पेट पालने के लिए भी कितनों की डांट फटकार सुनते है , कुछ पढ़ना चाहते है तो उन्हे हमारी पीजी के लडकीय पढ़ा देती है पर सुबह से शाम तक थके हारे होने के बाद बहुत कम ही लोगो में ये जज्बा होता है की चलो कुछ अच्छा सीख लेते है।  दिल्ली में जैसे जैसे भारत के अन्य जगहों से लोगो का आना बढ़ा है वैसे वैसे paying guest accommodations , ढाबा वाले , डिब्बे-वाले की शंखया भी बढ़ी है और साथ में  मांग बढ़ी है human trafficking और इन्हे लाने वाले एजेंट की .....जो इन्हे कहीं पूरे समय खाना बनाने , सफाई करने, भीख मांगने व वैश्यवृति के काम में लगा देते । इनमें से ना के बराबर लोग ही सरकार को tax देते व शिकायत करने पर पैसे देकर मामला दबाने में हम हिन्दुस्तानियो की बराबरी कोई कर ही नहीं सकता।
हर दिन कितने ही बच्चो का अपहरण हो रहा है और कुछ सालों बाद पता चलता है की उस बच्चे से जबर्दस्ती कहीं काम करवाया जा रहा है, कहीं गैर कानूनी आंतरिक अंगों को बेचने का कारोबार पनप रहा है। ऑपरेशन स्माइल के जरिये गाजियाबाद पुलिस  ने डीएसपी श्री रणविजय सिंह जी के नेतृत्व में जो कदम उठाया वो बेहद सराहनिए है,पर सिर्फ पुलिस ही सब कर लेती तो “community – policing” जैसे शब्दों का इजात कभी नहीं होता। गौर करे , वैशयावृति से जायदा एजेंट को फायदा बाल मजदूरी  देकर मिलता है और इसलिए आजकल ये जोरों से चल रहे है , और आप खुद पाएंगे की ये बच्चे हमारे अविकसित राज्यों के है, वहाँ के सरकार तो कान पर पत्थर डालकर बैठी है पर मैं  भारत सरकार से उम्मीद करूंगी की वो काला धन वालों पर नकेल कसने के क्रम में ऊपर जिक्र किए गए लोगो पर भी कुछ करेंगे जिससे की फिर से कोई human trafficking करने से पहले सौ बार सोचे।

जय हिन्द !! जय भारत

* बाल मज़दूरी का सीधा संबंध कर-चोरी से है , उदाहरण के लिए , एक दुकान वाला अपनी दुकान में 10 काम वाले रखता है , जिनमें से 5 बच्चे है...अनपढ़......गरीब ......जिनसे कम पैसो पर काम करना पड़ता है । अब वो दुकान वाला अपनी अकाउंट बूक में 10 लोगो को सैलरी देता है , ऐसा दिखा कर अपने हिस्से में लाभ कम दिखाएगा , बच्चे अनपढ़ व हुनर की कमी होने से ये जान नहीं पाते की वो यहाँ कम पैसो में जायदा काम कर रहे है ....ये पैसे फिर 5 बच्चो के है वो कहाँ गए ??? निश्चय ही वो काला धन बन रहा है। 

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